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क्या गलत है मायथोलॉजी शब्दमें

क्या गलत है मायथोलॉजी शब्दमें ( मातृ-भारतीमें भी प्रकाशित ) भारतीय वाङ्मयमें एक गलत शब्द घुस गया है मायथोलॉजी या मिथक। आज उसीका परामर्श लेना है। विश्वभरकी सारी सभ्यताओंका ब्यौरा लें तो हम पाते हैं कि निर्गुणकी उपासना और सगुणसे प्रीत ये दो बातें सारी सभ्याताओंमें थीं। इस सगुण-प्रीतमें थोडासा श्रद्धाका भाव भी आ जाता है, भययुक्त आदर भी आता है और कल्पनाविलास भी बडी मात्रामें आ जाता है। सगुण-प्रतीकोंमें सूर्य, वर्षा, मेघ, बिजली, चंद्रमा, सागर, नाग ये अतिचर्चित प्रतीक रहे। सगुण प्रतीकोंकी विशेषता ये होती है कि वे होते तो हैं कोई प्राकृतिक वस्तुमान लेकिन कल्पनामें उन्हें मानवी रूप दिया जाता है। उनमें श्रद्धालु हों तो वे प्रतीकोंसे मनौतियाँ भी माँग लेते हैं और उनके दैवी गुणोंसे लाभान्वित होनेकी आस भी रखते हैं ।सगुणसे केवल प्रीत रखनेवाली सभ्यताओंमें निर्गुणप्राप्ति असंभव है क्योंकि उसका तरीका कोई नही जान सकता। युरोपीय देशोंका गहरा परिचय ग्रीकोंके साथ रहा। वहींसे ग्रीको-रोमन भाषाओंका उदय हुआ। ग्रीकोंने अपने सगुण प्रतीकोंके विषयमें अपने कल्पनाविलाससे कई काव्यरचनाएँ, नाटक, कथाएँ आदि ल