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Showing posts from 2014
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मंदिरांचे ऐतिहासिक योगदान सा. विवेक मधील माझा लेख दिनांक 22 Dec 2014 भारतीय संस्कृतीत देवाचे स्थान काय? हा प्रश्न विचारला तर मोठे चमत्कारिक उत्तर मिळते. देव असतो का? याला सांख्य तत्त्वज्ञानात 'नाही' असे उत्तर दिले गेले. मात्र देव नसून त्याऐवजी अपरिवर्तनशील असा पुरुष आणि परिवर्तनशील अशी प्रकृती असतात आणि त्यांचेच एकत्रित व्यवहार आपल्याला जगभर चालताना दिसतात असा सिध्दान्त मांडणारे सांख्य तत्त्वज्ञान मोठया प्रमाणात लिहिले गेले. सर्व प्रकारच्या दुःखांचे आणि तापाचे निराकरण हवे असेल तर नियमित अभ्यासाने पुरुष-प्रकृति भेदाचा अनुभव घ्यावा त्यातून कैवल्य मिळते. या पुरुषामधील 'चैतन्य' किंवा ब्रह्म हे अभ्यास करण्यायोग्य एक वेगळे तत्त्व असून ते म्हणजेच ईश्वर, असा सिध्दान्त योगसूत्रांमध्ये मांडला गेला. थोडक्यात, कैवल्याची प्राप्ती होण्यासाठी ईश्वराची किंवा ईश्वरकृपेची गरज नसून पुरुष-प्रकृती भेद ओळखून त्याप्रमाणे वागता आले तरी पुरते, असा सांख्यांचा निरीश्वरवादाचा सिध्दान्त, तर ईश्वराची श्रध्दापूर्वक उपासना केल्याने कैवल्याचा मार्ग सुकर होतो हा योगसूत्रकारांचा ईश्वरवादी सिद्धांत.

कगार पर खड़ी भारतीयता देशबन्धु 20 अगस्त 2014

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  20, AUG, 2014, WEDNESDAY कगार पर खड़ी भारतीयता लीना मेहेंदले भारतीय  संस्कृति या भारतीयता की व्याख्या हम किस प्रकार करते हैं? किसे कहेंगे भारतीय संस्कृति? हमारे मन में रची-बसी जो भी भारतीय संस्कृति है-जो आज तक अपनी चिरंतनता के कारण जानी जाती थी, क्या वह आगे भी टिकने वाली है या कगार पर आ चुकी है? एक अंतिम धक्के की प्रतीक्षा में जो कदाचित निकट भविष्य में ही हो? या यह अपनी उसी चिरंतनता के सामथ्र्य से टिकी रहेगी? क्या इसके टिकने में समाज की सामूहिक प्रयासों का कोई महत्व है, या बिना उसके भी अपने  आप कोई संस्कृति टिकती है? किसे हम भारतीय संस्कृति कहते हैं और किसे हम आधुनिक संस्कृति कहते हैं? दोनों में से हमें क्या चाहिए? पर पहले यह भी तो स्पष्ट हो कि क्या दोनों अलग-अलग हैं-क्या भारतीय संस्कृति दकियानूसी है? जिसे हम आधुनिक संस्कृति कहते हैं क्या वह हमारी युवा पीढ़ी के आकर्षण का विषय नहीं है? विकास क्या है? विकास की जो दिशा हमने पिछले साठ-सत्तर वर्षों से अपनाई है और जो आगे भी अपनाने वाले हैं क्या वह हमारी संस्कृति के लिए "मूले कुठार:"  है? और यदि वैसा ही तो हम विका

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वित्त मंत्रालयके घोटाले देशबन्धू 12 जुलाई 2014 -डीटीपी व चित्रप्रत

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वित्त मंत्रालयके घोटाले देशबन्धू 12 जुलाई 2014  वित्त मंत्रालयके घोटाले देशमें जब २ जी स्कैम होता है , सीडब्ल्यूजी या कोलगेट स्कैम होता है , तो जनता जान पाती है कि उन घोटालोंके पीछे कौन मंत्री या कौनसे विभागके अधिकारी थे। ऐसे स्कैम तत्काल न सही परन्तु ३ - ४ वर्षोंमें बाहर आ जाते हैं। क्योंकी कई बार तो ( सीएजी ) कैग ही अपने ऑडिटमें उनका पर्दाफाश करती है। परन्तु वित्त मंत्रालयके घोटाले प्रकट नही होते। इसका एक कारण यह भी है कि घोटालेकी व्याख्या ही इस प्रकार की जाती है ताकि वित्त मंत्रालयकी गलतियां या घोटालेको घोटाला माना ही न जाय। इस प्रकार व्याख्या करने वालोंपर प्रश्न भी नही उठायें जाते . क्योंकि उनके पास हावर्ड वर्ल्ड बॅंक , आयएमएफ आदि संस्थानोंके ठप्पे होते हैं , भले ही उन संस्थाओंमें लागू होने वाली सच्चाई या ईमानदारी इनके पास हो या ना हो। वित्त मंत्रालयमें घोटालोंका एक सरल तरीका है। अपनी मर्जीके किसीको सरकारी तिजोरीसे विभिन्न रूपसे कर्जा इत्यादि देकर फिर उसे छूट दी जाय – तुम इसे वापस मत करना , तुम लूट कर लो , हम उसे छूट बना देंगे। हमें च

दूरसंचारकी दिशामें प्रभावी पहल के लिये--देशबन्धु 24 जून 2014

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दूरसंचारकी दिशामें प्रभावी पहल के लिये--देशबन्धु 24 जून 2014 http://www.deshbandhu.co.in/newsdetail/4557/10/0 लेख    प्रिंट संस्‍करण        ईमेल करें      प्रतिक्रियाएं पढ़े        सर्वाधिक पढ़ी        सर्वाधिक प्रतिक्रियाएं मिली दूर-संचार की दिशा में प्रभावी पहल (10:42:50 PM)   24, Jun, 2014, Tuesday अन्य अन्य लेख पार्टी (संगठन) और सरकार बढ़ती महंगाई : अच्छे दिन किसके आएंगे? भारत-चीन रिश्तों में बदलाव कैसे होगा? कैसे हो कांग्रेस का पुनरुद्धार आर्थिक कारणों से होते हैं भारत में दंगे सप्लाई-साइड इकॉनामिक्स और मोदी बढ़ती महंगाई से परेशान जनता नेता क्यों पढ़ें? महंगाई से निबटने की रणनीति लीना मेहेंदले विकास  के लिए यातायात की सुविधा का महत्व समझते हुए एक अच्छा प्रयास अटल बिहारी वाजपेयीजी के कार्यकाल में हुआ था। उन्होंने देश के चार कोनों को जोडऩे वाली चार बड़ी सड़कें और आमने-सामने वाले कोनों को मिलाने वाली दो और बड़ी सड़कें, इस प्रकार ''स्वर्णिम चतुष्कोण की कल्पना की थी और उस दशा में सार्थक प्रयास भी आरंभ किए थे। आज उसका अच्छा लाभ देश को मिल र

भारतीय संस्कृति म्हणजे नेमके काय ?

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भारतीय संस्कृति म्हणजे नेमके काय ?  तिची (आतापर्य़ंत टिकलेली) चिरंतनता संपत आहे का ? आणि किती लौकर नष्ट होणार ?  तसे होणे म्हणजेच हवीहवीशी आधुनिकता आहे काय?  भारताचा विकास म्हणजे नेमके काय ? आज होतांना दिसत असलेला विकास आपल्याला भारतीय संस्कृतिपासून दूर नेत आहे का? असल्यास आपण विकास आणि भारतीय संस्कृति या दोहोंपैकी काय उचलणार ? Ashok Gaikwad … विकासाची व्याख्या नव्याने समजावण्याची वेळ आली आहे. आधुनिक पद्धतीने शेती … म्हणजे विकास ( का ऱ्हास ?)…का जुनी पद्धत (सेंद्रिय) / रासायनिक खतांशिवाय शेतीच बरोबर. जंगले तोडून (तेथल्या वनवासिंना संपवून) शहरे वसविने म्हणजे विकास (?)…  आजकाल त्याला 'Land Development' म्हणतात. पश्चिम घाटातील समृद्ध वनराई (flora-fauna) संपवून तेथे औद्योकीकरण करणे म्हणजे विकास याचा विचार व्हायलाच हवा. दुर्दैवाने कुठलाच राजकीय पक्ष / नेता यावर भाष्य करीत नाही. संस्कृती म्हणजे जीवन-शैली. परंपरांचे पालन म्हणजे संस्कृती नव्हे (कदाचित मी चूक असेल). अगदी डोळसपणे … परिणामांचा (संपूर्णपणे सर्वसमावेशकपणे निसर्गावरचा,

INCOMPLETE List of my PPTs on google site

List of my PPTs on google site INCOMPLETE Civil Administration -- Prepared for a trainee group from Afganistan INSCRIPT -- Hindi  (15) Motivation (16) Energy Audit  -- NMU lecture India's Energy Security -- NMU lecture Good Governance -- NMU lecture माहिती अͬधिकाराचा वापर -- दीपस्तंभ जळगांन कार्यक्रम Urban Energy Scenario - PCRA initiative