राष्ट्र के लिये कुछ प्रश्न -- अपूर्ण
राष्ट्र के लिये कुछ प्रश्न
आज भारतीय नागरिक, भारतीय समाज और भारतीय शासनकर्तोओं के सम्मुख मैं कुछ प्रश्न रखना चाहती हूँ।
राष्ट्रके लिये आधारभूत होते हैं हमारे संसाधन ।
1) तो हममेंसे कितने उनके प्रति जागरूक होकर उनकी जानकारी रखते हैं।
2) कितने उनके विनियोगके विषयमें जानते हैं।
3) उनकी परिरक्षाके महत्वको समझकर उसका निर्वाह करना जानते हैं।
4) उनकी चिरंतनता बनाये रखनेका प्रण लेते हैं या प्रयास करते हैं।
5) उनकी चिरंतनता पर आँच आये बिना उनमें मूल्यवृद्धि करने की कला, विज्ञान और क्षमता रखते हैं।
6) दूसरा प्रश्न समूह हमारी शिक्षा नीति, अर्थनीति. विकास नीति, संवाद नीति, सुरक्षा नीति, विदेश नीति, एवं समाज नीति से संबंध रखता हैं। ये सातों सैद्धान्तिक हैं। इनका प्रतिबिंम्ब जिन व्यावहारिक प्रणालियोंमें देखा जा सकता है वे हैं शिक्षा प्रणाली, बॅंकींग, उद्यम व व्यापार, यातायात, सुरक्षा दल, पर्यटन, तथा स्वास्थ्य प्रणाली।
इनमेंसे केवल शिक्षा ही ऐसा क्षेत्र है जिसमें नीतिगत विचार तथा कार्यप्रणाली दोनों शामिल हैं। मजेकी बात कि शिक्षित समाज हमारे संसाधनों की सूची में भी आता है।
तो चलते हैं हमारे पहले प्रश्न पर कि हमारे संसाधन क्या क्या हैं।
सर्व प्रमुख है हमारी धरती, पहाड, जंगल, नदियाँ, समुद्र, मौसम, जैव विविधता, मनुष्य धन, पशुधन, संस्कृती और हमारा वाङ्मय भंडार। संस्कृती व वाङ्मयमें सन्निहित हैं हमारी सभी देशज भाषाएँ, बोलियाँ, लोकगाथाएँ, हमारी जीवनशैली और हमारें मूल्य ।
क्या हम जानते हैं कि इनकी परिरक्षा कैसे होती है, इनकी चिरंतनता को बनाये रखने के लिये क्या करना पडता है और उस पर आंच आये बिना भी उनसे उत्पादन निकाल कर उनकी मूल्य वृद्धि कैसे की जाती है? इन सबके लिये आवश्यक है शिक्षा अतः ये सारे हमारी शिक्षा नीति पर अवलम्बित हैं।
आज हम क्या कर रहे हैं ? वह परिरक्षाके हेतु उपयुक्त है या इसके विपरीत ?
अर्थ नीति - सबसे अधिक नफा देने वाले कार्य क्षेत्र - शिक्षा, कन्स्ट्रक्शन, पर्यटन, IT, OFC, रिसर्च, फार्मास्यूटिकल्स, डेटा मायनिंग। इनके अलावा नशा, जुआ, ह्यूमन ट्रॅफिकिंग जैसे गनहगारी क्षेत्र भी भरपूर आर्थिक कमाई देते हैं लेकिन हम उनकी गिनती नही करेंगे।
तो शिक्षा नीति और अर्थनीति ऐसी हो जो प्राकृतिक संसाधन बचा सके। लेकिन क्या वह हमें बचाती हुई दिखती है ?
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