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कगार पर खड़ी भारतीयता देशबन्धु 20 अगस्त 2014

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  20, AUG, 2014, WEDNESDAY कगार पर खड़ी भारतीयता लीना मेहेंदले भारतीय  संस्कृति या भारतीयता की व्याख्या हम किस प्रकार करते हैं? किसे कहेंगे भारतीय संस्कृति? हमारे मन में रची-बसी जो भी भारतीय संस्कृति है-जो आज तक अपनी चिरंतनता के कारण जानी जाती थी, क्या वह आगे भी टिकने वाली है या कगार पर आ चुकी है? एक अंतिम धक्के की प्रतीक्षा में जो कदाचित निकट भविष्य में ही हो? या यह अपनी उसी चिरंतनता के सामथ्र्य से टिकी रहेगी? क्या इसके टिकने में समाज की सामूहिक प्रयासों का कोई महत्व है, या बिना उसके भी अपने  आप कोई संस्कृति टिकती है? किसे हम भारतीय संस्कृति कहते हैं और किसे हम आधुनिक संस्कृति कहते हैं? दोनों में से हमें क्या चाहिए? पर पहले यह भी तो स्पष्ट हो कि क्या दोनों अलग-अलग हैं-क्या भारतीय संस्कृति दकियानूसी है? जिसे हम आधुनिक संस्कृति कहते हैं क्या वह हमारी युवा पीढ़ी के आकर्षण का विषय नहीं है? विकास क्या है? विकास की जो दिशा हमने पिछले साठ-सत्तर वर्षों से अपनाई है और जो आगे भी अपनाने वाले हैं क्या वह हमारी संस्कृति के लिए "मूले कुठार:"  है? और यदि वैसा ही तो हम विका

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