हजारों स्कॅम
देशबन्धु, रायपुर - परिशिष्ट - अवकाश अंक 30, Nov, 2010, Tuesday
हजारों स्कॅम
-- लीना मेहेंदले
कल रात मियाँ गालिब मेरे सपने में आए और मुझ पर बरसने लगे कि मैं उनके शेर को बिगाड़ रही हूं।
मैंने पूछा कौन सा शेर तो कहने लगे वहीं- हजारों ख्वाहिशें ऐसीं कि हर ख्वाहिश पे दम निकले । बहुत निकले मेरे अरमां- मगर फिर भी कम निकले। मैंने कहा- ताज्जुब है, मैंने भी पिछले चार दिनों से न कलम पकड़ा है, न एक भी अक्षर लिखा है, फिर यह इल्जाम क्यों ? कहने लगे न लिखने से क्या होता है, पर सोचा तो है । और यूं- कहकर ठहाका मारकर हंसते हुए चल दिए।
मैं सपने से जाग पड़ी और सोचने लगी। मैंने वाकई में कई दिनों से न कुछ लिखा था और न कुछ सोचा था। और उनका वह ठहाका मारते हुए चले जाना- क्या वह शरारत भरा नहीं था? क्या मुझे उकसाया जा रहा था?
हजारों ख्वाहिशें ऐसीं... क्या खाक हजारों ख्वाहिशें जेहन में आएंगी । यहां तो अखबार पढ़कर चारों ओर घपले ही घपले दिखते हैं, फिर अच्छे माहौल की ख्वाहिशें कहां से आएंगी?
सोचते-सोचते मैं सोचने लगी कि ख्वाहिशें तो नहीं, पर हां, घपले तो हजारों हैं।
हजारों स्कॅम हैं ऐसे
कि हर नतीजा जेल को निकले।
बहुत निकले मरे चूहे ।
नतीजे फिर भी कम निकले।
गिनने लगूं तो वाकई हजारों स्कॅम हैं और नतीजा सिफर! इतने घोटाले हुए आज तक किसी भी सत्ता से उतरे हुए नेता के हाथ हथकड़ी नहीं लगी, न किसी को जेल हुई, न किसी की सुनवाई पूरी होकर उन्हें दोषी करार दिया गया। दो लोगों को हथकड़ी लगी दिखीं- सत्यम घोटाले का राजू जो उद्योगपति था और तेलगी घोटाले का तेलगी जो अरबों नकली नोटों के धंधे का मालिक था। लालू, शहाबुद्दीन, पद्मसिंह पाटिल आदि कुछ लोग राजसी जेलों में रहे और छूट गए। मधु कोड़ा जेल में है और पहली बार सुनने में आया है कि सरकार उसकी संपत्ति जब्त करने की बात सोच रही है।
लेकिन नाम ही गिनाने हो तो अंतुले से बात शुरू होती है, जिसमें मुकदमा दायर करने की अनुमति देने में सरकार ने कई महीने लगाए। जस्टिस लेंटिन ने प्राथमिक कागजों को देखकर कहा- ''आय अँम् शॉक्ड'' इतना बड़ा है यह भ्रष्टाचार । लेकिन जांच हुई, कोर्ट में अधकचरी केस गई। हर मुद्दे को सुप्रीम कोर्ट तक खींचा गया और इस प्रकार अठारह वर्ष बाद अंतिम फैसला हुआ- निर्दोष!
सुखराम शर्मा- गद्दों, तकियों के बीच से करोड़ों रुपए निकले और फैसला हुआ - निर्दोष!
थुंगम को सरकारी किराए के घरों के आबंटन में घूसखोरी में पकड़ा गया। हाईकोर्ट ने पचास लाख रुपए रखवा लिए और सुनवाई को आमरण टाल दिया। वह निर्दोष की तरह ही घूम रहे हैं।
शिबू सोरेन - निर्दोष
कैप्टन अमरिंदर सिंह- निर्दोष
किसी को निर्दोष घोषित करने का अच्छा तरीका मैंने महाराष्ट्र में देखा । एक मंत्री पर अण्णा हजारे ने भ्रष्टाचार का आरोप लगाया और उसकी संपत्ति की जांच की मांग पर अड़ गए। सरकार ने जांच कमेटी बैठाई। कहा पता करो- मंत्री पद के दौरान मंत्री ने क्या कमाया।
एक रिटायर्ड अफसर को जांच पर बैठाया। मंत्री बनने से पहले यह महाशय कार्पोरेटर रहे थे। उससे पहले साइकिल पर खाने के टिफिन बॉक्सेस पहुंचाते थे। अब जिस संपत्ति को पूछो कहते- ''जी वह तो मैंने मंत्री होने से पहले कार्पोरेटर रहते हुए कमाई थी।''
''क्या घूस से?''
''जनाब आप अपना काम देखिए- आपको केवल मंत्रीपद के दौरान इकट्ठा की संपत्ति के जांच का हक है।''
नतीजा- निर्दोष!
स्पेक्ट्रम घोटाले की खबरें मैं देख व पढ़ रही हूँ। 17 नवम्बर इंडियन एक्सप्रेस दिल्ली की एक खबर है- सीएजी की टीम कई महीनों से इन घोटालों की जांच कर रही थी और कई महीनों से घोटालों की रकम को हनुमान जी की पूंछ की तरह बढ़ती हुई देख रही थी। बस, इतनी सी खबर पर मेरी आंखें टिकी रह गईं। और भी क्या कुछ था उस खबर में जो मैं महत्वपूर्ण नहीं मानती। सवाल है कि जब सीएजी इस मामले की जांच कई महीनों से कर रही थी तो अवश्य ही इस घोटाले के शुरूवाती कागजों में ही पांच-दस सौ करोड़ के घोटाले उन्हें दिखा दिए होंगे। फिर उनके ध्यान में आया होगा कि यह तो 'टिप ऑफ आइस बर्ग' है। फिर उन्होंने पूरा आइस बर्ग खोजा जो 176 लाख करोड़ जितना विशाल निकला। ध्यान रहे कि हमारा वार्षिक बजट भी 100 लाख करोड़ से कम ही रहता है। यानि कि गरीबों के लिए वार्षिक प्लान में जितनी रकम दी जाती है, उससे अधिक रकम चोरों पर लुटाई गई है। वाकई सीएजी ने इसे उघाड़कर धन्यता का काम किया है।
लेकिन यदि सीएजी ने तभी आवाज लगाई होती जब सौ करोड़ के घोटाले तक पहुंच गए थे, और तभी एफआईआर दर्ज की होती, तो भी पूरा घोटाला बाहर आ ही जाता, लेकिन पिछले छै: आठ महीनों में जो बड़े घोटाले हुए हैं, और देश का पैसा चोरी हो गया है, उस पर रोक लग सकती थी।
आप कल्पना करिए एक घर की जिसमें सेंध लगी है। घर का एक सदस्य विशेषज्ञ है, जब चोरी हो जाती है तो वह बता सकता है कि कहां, कैसे सेंध लगी और चोर किधर से माल निकालते गए।
सो यह विशेषज्ञ देखता है कि सेंध लगी है, माल चोरी हुआ है, और शायद माल अब भी निकाला जा रहा है। लेकिन चूंकि वह विशेषज्ञ है, इसलिए शोर नहीं मचाता। वह देखना चाहता है कि सेंध कितनी बड़ी है, चोरों को क्या कमाल हासिल है, वह कितना माल कैसी खूबसूरती से निकाल रहे हैं। मैं और देखूं, और भी देखूं। इतने बड़े काण्ड का पर्दाफाश करूं। चोर को दिखा दूं कि हम भी उसके समकक्ष हैं। यदि वह 200 लाख करोड़ की चोरी की ताकत रखता है, तो मैं भी उतनी बड़ी चोरी का कच्चा चिट्ठा खोलने की ताकत रखता हूं। क्या ऐसे थे हमारे विशेषज्ञ?
चलो, उतने महीने पहले चोरी की और देशद्रोह की, देश को लूटने की योजना की कोई रपट नहीं लिखी गई। तो क्या आज लिखी गई है ? और जिसने चोरी का माल पाया, और उससे पैसा बनाया, उनका क्या? क्या वह नहीं समझ रहे थे कि उन्हें चोरी का माल बेचा जा रहा है? बिलकुल समझ रहे थे, और उस चोरी को पचा लेने का दावा रखते थे। इसीलिए तो वे कार्पोरेट जगत के बेताज बादशाह थे।
लेकिन मियां गालिब, अब देश की जनता क्या करे? आप तो ठहरे शायर, आप क्या उत्तर देंगे। लेकिन मैं दे सकती हूं इसका उत्तर। उसी कांट्रक्ट ऍक्ट में मिलेगा, जिसके आधार पर खरीदारी, लेन-देन और कार्पोरेट जगत का व्यापार चलता है।
लेकिन इससे पहले हम एक नजर अपने लोकतंत्र और उसके बुनियादी सिध्दांतों की ओर डालें। हम भारतीय लोकतंत्र के लोग ही इस प्रणाली के शासक हैं- अपनी देश की संपत्ति के मालिक और रखवालदार । चुनाव में जो प्रतिनिधि जीतकर आते हैं, उनके सारे भाषण याद करिए- वो अपने आपको जनता का सेवक बताते हैं, न कि जनता का मालिक। और इस एक मामले में वे पूरे सत्यवादी हैं- क्योंकि वे वाकई जनता के सेवक हैं-नौकर हैं और यदि आप उन्हें थोड़ा ऊंचा रूतबा देना चाहते हैं तो कह सकते हैं कि वे जनता के प्रतिनिधि हैं- अर्थात एजेण्ट!
तो अब कॉण्ट्रॅक्ट ऍक्ट कहता है कि यदि किसी मालिक के लिए काम करने वाला एजेण्ट या नौकर फ्रॉड करता है, गबन करता है, चोरी करता है और अगर मालिक उस पर फ्रॉड, गबन या चोरी का मामला दर्ज करता है, तो फिर उस एजेण्ट के द्वारा किए गए दुष्कर्मों को निस्तार किया जा सकता है। मालिक ऐसे कामों की न्यायिक जिम्मेवारी से मुक्त हो जाता है और उस माल को वापस ले सकता है जो फ्रॉड और गबन के माध्यम से दूसरों को दिया गया।
लेकिन शर्त यह है कि पहले मालिक अपने एजेण्ट, नौकर या प्रतिनिधि के विरुध्द यह एफआईआर दर्ज करें कि उस एजेण्ट ने फ्रॉड, गबन किया है।
तो क्या इस देश की मालिक जनता सबसे पहले ए. राजा पर फ्रॉड और गबन का एफआईआर कर सकती है? पब्लिक सर्वेण्ट (शब्द को गौर करें- वह सर्वेण्ट है,) होने के नाते उसे यह संरक्षण मिला है कि जब तक देश के प्रधानमंत्री उस पर एफआईआर दर्ज कराने की अनुमति नहीं देते तब तक एफआईआर दर्ज नहीं हो सकती, और तब तक जिनके पास यह चोरी का माल और उसके फायदे पहुंचे हैं, उनसे आप वह माल वापस नहीं ले सकते।
सुब्रह्मण्यम स्वामी ने प्रधानमंत्री से इसी एफआईआर को दर्ज कराने की मांग या अनुमति चाही थी-नवम्बर 2008 में। जब कई महीनों अनुमति नहीं मिली तो सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। वह मुकदमा अभी चल रहा है, और प्रधानमंत्री ने राजा को हटा दिया है। अर्थात वह एजेण्ट के रूप में अगली चोरी या गबन नहीं कर सकेगा। लेकिन एफआईआर की अनुमति नहीं दे रहे। क्योंकि यह अनुमति देते हैं तो रिलायन्स समेत उन कई कार्पोरेट हाऊसेस से वसूली करनी पड़ेगी जिनके पास यह चोरी का माल है । जिस कार्पोरेट सेक्टर के आठ-नौ-दस प्रतिशत उछाल पर प्रधानमंत्री अपनी पीठ थपथपा रहे हैं वह उछाल धड़ाम से 2-3 पर आ गिरेगा।
मेरे दिमाग में बार-बार एक दृश्य घूम जाता है- नासिक कमिश्नर की हैसियत से मैं जेल विजिट कर रही थी। महिला कक्ष में एक बीस-बाइस वर्ष की कैदी थीं। उसका गुनाह पूछा तो पता चला ''कुछ नहीं -- रेल्वे स्टेशन पर घूम रही थी। पुलिस को शक है कि किसी की जेब काटने की फिराक में थी। इसी संदेह पर पोलिस ने पकड़ कर यहां ला रखा है।
पांच महीने से पड़ी है- अभी तक मजिस्टे्रट ने छोड़ने की अनुमति नहीं दी है। कच्ची कैदी है।''
लड़की ने रो रोकर मुझसे गुहार लगाई- मैं निर्दोष हूं। छोटा भाई खो गया था। उसी को स्टेशन पर घूम-घूम कर खोज रही थी। मुझे छुड़ाओ। अब तक तो भाई भी वहां गुम हो गया होगा। मैं देश की आला अफसर तब भी कुछ नहीं कर पाई थी। और, आज भी नहीं ! सो यह लड़की और उस जैसे सैकड़ों बच्चे आज भी हमारे जेलों में केवल पुलिस की शक के आधार पर सड़ रहे हैं और ए राजा द्वारा सेंध लगाया माल दूसरे खरीदारों की जेब में मुनाफे भर रहा है।
यही है हमारा अर्थशास्त्र । चालीस चोर लुटेरों से मिलकर खजाना भरो और देश को बेवकूफ बनाओं- कि देखो कितना खजाना इकट्ठा हुआ है । कार्पोरेट सेक्टर को खूब चोरी करने दो और उनकी सोने की जगमगाहट लोगों को दिखाकर कहो- देखो देश कितना तरक्की कर रहा है- हमारे इन चोर, लुटरों की बदौलत संसार के पांच सौ सबसे धनिक व्यक्तियों में हमारे देशवासियों की गिनती होती है।
बोलो लूटने वालों की जय । वह जेल की लड़की निकम्मी थी - गरीब ही रही, नीरा राडिया न बन सकी -- सो उसकी पराजय ।
--------------------------------------------------------------------------------------------------
हजारों स्कॅम
-- लीना मेहेंदले
कल रात मियाँ गालिब मेरे सपने में आए और मुझ पर बरसने लगे कि मैं उनके शेर को बिगाड़ रही हूं।
मैंने पूछा कौन सा शेर तो कहने लगे वहीं- हजारों ख्वाहिशें ऐसीं कि हर ख्वाहिश पे दम निकले । बहुत निकले मेरे अरमां- मगर फिर भी कम निकले। मैंने कहा- ताज्जुब है, मैंने भी पिछले चार दिनों से न कलम पकड़ा है, न एक भी अक्षर लिखा है, फिर यह इल्जाम क्यों ? कहने लगे न लिखने से क्या होता है, पर सोचा तो है । और यूं- कहकर ठहाका मारकर हंसते हुए चल दिए।
मैं सपने से जाग पड़ी और सोचने लगी। मैंने वाकई में कई दिनों से न कुछ लिखा था और न कुछ सोचा था। और उनका वह ठहाका मारते हुए चले जाना- क्या वह शरारत भरा नहीं था? क्या मुझे उकसाया जा रहा था?
हजारों ख्वाहिशें ऐसीं... क्या खाक हजारों ख्वाहिशें जेहन में आएंगी । यहां तो अखबार पढ़कर चारों ओर घपले ही घपले दिखते हैं, फिर अच्छे माहौल की ख्वाहिशें कहां से आएंगी?
सोचते-सोचते मैं सोचने लगी कि ख्वाहिशें तो नहीं, पर हां, घपले तो हजारों हैं।
हजारों स्कॅम हैं ऐसे
कि हर नतीजा जेल को निकले।
बहुत निकले मरे चूहे ।
नतीजे फिर भी कम निकले।
गिनने लगूं तो वाकई हजारों स्कॅम हैं और नतीजा सिफर! इतने घोटाले हुए आज तक किसी भी सत्ता से उतरे हुए नेता के हाथ हथकड़ी नहीं लगी, न किसी को जेल हुई, न किसी की सुनवाई पूरी होकर उन्हें दोषी करार दिया गया। दो लोगों को हथकड़ी लगी दिखीं- सत्यम घोटाले का राजू जो उद्योगपति था और तेलगी घोटाले का तेलगी जो अरबों नकली नोटों के धंधे का मालिक था। लालू, शहाबुद्दीन, पद्मसिंह पाटिल आदि कुछ लोग राजसी जेलों में रहे और छूट गए। मधु कोड़ा जेल में है और पहली बार सुनने में आया है कि सरकार उसकी संपत्ति जब्त करने की बात सोच रही है।
लेकिन नाम ही गिनाने हो तो अंतुले से बात शुरू होती है, जिसमें मुकदमा दायर करने की अनुमति देने में सरकार ने कई महीने लगाए। जस्टिस लेंटिन ने प्राथमिक कागजों को देखकर कहा- ''आय अँम् शॉक्ड'' इतना बड़ा है यह भ्रष्टाचार । लेकिन जांच हुई, कोर्ट में अधकचरी केस गई। हर मुद्दे को सुप्रीम कोर्ट तक खींचा गया और इस प्रकार अठारह वर्ष बाद अंतिम फैसला हुआ- निर्दोष!
सुखराम शर्मा- गद्दों, तकियों के बीच से करोड़ों रुपए निकले और फैसला हुआ - निर्दोष!
थुंगम को सरकारी किराए के घरों के आबंटन में घूसखोरी में पकड़ा गया। हाईकोर्ट ने पचास लाख रुपए रखवा लिए और सुनवाई को आमरण टाल दिया। वह निर्दोष की तरह ही घूम रहे हैं।
शिबू सोरेन - निर्दोष
कैप्टन अमरिंदर सिंह- निर्दोष
किसी को निर्दोष घोषित करने का अच्छा तरीका मैंने महाराष्ट्र में देखा । एक मंत्री पर अण्णा हजारे ने भ्रष्टाचार का आरोप लगाया और उसकी संपत्ति की जांच की मांग पर अड़ गए। सरकार ने जांच कमेटी बैठाई। कहा पता करो- मंत्री पद के दौरान मंत्री ने क्या कमाया।
एक रिटायर्ड अफसर को जांच पर बैठाया। मंत्री बनने से पहले यह महाशय कार्पोरेटर रहे थे। उससे पहले साइकिल पर खाने के टिफिन बॉक्सेस पहुंचाते थे। अब जिस संपत्ति को पूछो कहते- ''जी वह तो मैंने मंत्री होने से पहले कार्पोरेटर रहते हुए कमाई थी।''
''क्या घूस से?''
''जनाब आप अपना काम देखिए- आपको केवल मंत्रीपद के दौरान इकट्ठा की संपत्ति के जांच का हक है।''
नतीजा- निर्दोष!
स्पेक्ट्रम घोटाले की खबरें मैं देख व पढ़ रही हूँ। 17 नवम्बर इंडियन एक्सप्रेस दिल्ली की एक खबर है- सीएजी की टीम कई महीनों से इन घोटालों की जांच कर रही थी और कई महीनों से घोटालों की रकम को हनुमान जी की पूंछ की तरह बढ़ती हुई देख रही थी। बस, इतनी सी खबर पर मेरी आंखें टिकी रह गईं। और भी क्या कुछ था उस खबर में जो मैं महत्वपूर्ण नहीं मानती। सवाल है कि जब सीएजी इस मामले की जांच कई महीनों से कर रही थी तो अवश्य ही इस घोटाले के शुरूवाती कागजों में ही पांच-दस सौ करोड़ के घोटाले उन्हें दिखा दिए होंगे। फिर उनके ध्यान में आया होगा कि यह तो 'टिप ऑफ आइस बर्ग' है। फिर उन्होंने पूरा आइस बर्ग खोजा जो 176 लाख करोड़ जितना विशाल निकला। ध्यान रहे कि हमारा वार्षिक बजट भी 100 लाख करोड़ से कम ही रहता है। यानि कि गरीबों के लिए वार्षिक प्लान में जितनी रकम दी जाती है, उससे अधिक रकम चोरों पर लुटाई गई है। वाकई सीएजी ने इसे उघाड़कर धन्यता का काम किया है।
लेकिन यदि सीएजी ने तभी आवाज लगाई होती जब सौ करोड़ के घोटाले तक पहुंच गए थे, और तभी एफआईआर दर्ज की होती, तो भी पूरा घोटाला बाहर आ ही जाता, लेकिन पिछले छै: आठ महीनों में जो बड़े घोटाले हुए हैं, और देश का पैसा चोरी हो गया है, उस पर रोक लग सकती थी।
आप कल्पना करिए एक घर की जिसमें सेंध लगी है। घर का एक सदस्य विशेषज्ञ है, जब चोरी हो जाती है तो वह बता सकता है कि कहां, कैसे सेंध लगी और चोर किधर से माल निकालते गए।
सो यह विशेषज्ञ देखता है कि सेंध लगी है, माल चोरी हुआ है, और शायद माल अब भी निकाला जा रहा है। लेकिन चूंकि वह विशेषज्ञ है, इसलिए शोर नहीं मचाता। वह देखना चाहता है कि सेंध कितनी बड़ी है, चोरों को क्या कमाल हासिल है, वह कितना माल कैसी खूबसूरती से निकाल रहे हैं। मैं और देखूं, और भी देखूं। इतने बड़े काण्ड का पर्दाफाश करूं। चोर को दिखा दूं कि हम भी उसके समकक्ष हैं। यदि वह 200 लाख करोड़ की चोरी की ताकत रखता है, तो मैं भी उतनी बड़ी चोरी का कच्चा चिट्ठा खोलने की ताकत रखता हूं। क्या ऐसे थे हमारे विशेषज्ञ?
चलो, उतने महीने पहले चोरी की और देशद्रोह की, देश को लूटने की योजना की कोई रपट नहीं लिखी गई। तो क्या आज लिखी गई है ? और जिसने चोरी का माल पाया, और उससे पैसा बनाया, उनका क्या? क्या वह नहीं समझ रहे थे कि उन्हें चोरी का माल बेचा जा रहा है? बिलकुल समझ रहे थे, और उस चोरी को पचा लेने का दावा रखते थे। इसीलिए तो वे कार्पोरेट जगत के बेताज बादशाह थे।
लेकिन मियां गालिब, अब देश की जनता क्या करे? आप तो ठहरे शायर, आप क्या उत्तर देंगे। लेकिन मैं दे सकती हूं इसका उत्तर। उसी कांट्रक्ट ऍक्ट में मिलेगा, जिसके आधार पर खरीदारी, लेन-देन और कार्पोरेट जगत का व्यापार चलता है।
लेकिन इससे पहले हम एक नजर अपने लोकतंत्र और उसके बुनियादी सिध्दांतों की ओर डालें। हम भारतीय लोकतंत्र के लोग ही इस प्रणाली के शासक हैं- अपनी देश की संपत्ति के मालिक और रखवालदार । चुनाव में जो प्रतिनिधि जीतकर आते हैं, उनके सारे भाषण याद करिए- वो अपने आपको जनता का सेवक बताते हैं, न कि जनता का मालिक। और इस एक मामले में वे पूरे सत्यवादी हैं- क्योंकि वे वाकई जनता के सेवक हैं-नौकर हैं और यदि आप उन्हें थोड़ा ऊंचा रूतबा देना चाहते हैं तो कह सकते हैं कि वे जनता के प्रतिनिधि हैं- अर्थात एजेण्ट!
तो अब कॉण्ट्रॅक्ट ऍक्ट कहता है कि यदि किसी मालिक के लिए काम करने वाला एजेण्ट या नौकर फ्रॉड करता है, गबन करता है, चोरी करता है और अगर मालिक उस पर फ्रॉड, गबन या चोरी का मामला दर्ज करता है, तो फिर उस एजेण्ट के द्वारा किए गए दुष्कर्मों को निस्तार किया जा सकता है। मालिक ऐसे कामों की न्यायिक जिम्मेवारी से मुक्त हो जाता है और उस माल को वापस ले सकता है जो फ्रॉड और गबन के माध्यम से दूसरों को दिया गया।
लेकिन शर्त यह है कि पहले मालिक अपने एजेण्ट, नौकर या प्रतिनिधि के विरुध्द यह एफआईआर दर्ज करें कि उस एजेण्ट ने फ्रॉड, गबन किया है।
तो क्या इस देश की मालिक जनता सबसे पहले ए. राजा पर फ्रॉड और गबन का एफआईआर कर सकती है? पब्लिक सर्वेण्ट (शब्द को गौर करें- वह सर्वेण्ट है,) होने के नाते उसे यह संरक्षण मिला है कि जब तक देश के प्रधानमंत्री उस पर एफआईआर दर्ज कराने की अनुमति नहीं देते तब तक एफआईआर दर्ज नहीं हो सकती, और तब तक जिनके पास यह चोरी का माल और उसके फायदे पहुंचे हैं, उनसे आप वह माल वापस नहीं ले सकते।
सुब्रह्मण्यम स्वामी ने प्रधानमंत्री से इसी एफआईआर को दर्ज कराने की मांग या अनुमति चाही थी-नवम्बर 2008 में। जब कई महीनों अनुमति नहीं मिली तो सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। वह मुकदमा अभी चल रहा है, और प्रधानमंत्री ने राजा को हटा दिया है। अर्थात वह एजेण्ट के रूप में अगली चोरी या गबन नहीं कर सकेगा। लेकिन एफआईआर की अनुमति नहीं दे रहे। क्योंकि यह अनुमति देते हैं तो रिलायन्स समेत उन कई कार्पोरेट हाऊसेस से वसूली करनी पड़ेगी जिनके पास यह चोरी का माल है । जिस कार्पोरेट सेक्टर के आठ-नौ-दस प्रतिशत उछाल पर प्रधानमंत्री अपनी पीठ थपथपा रहे हैं वह उछाल धड़ाम से 2-3 पर आ गिरेगा।
मेरे दिमाग में बार-बार एक दृश्य घूम जाता है- नासिक कमिश्नर की हैसियत से मैं जेल विजिट कर रही थी। महिला कक्ष में एक बीस-बाइस वर्ष की कैदी थीं। उसका गुनाह पूछा तो पता चला ''कुछ नहीं -- रेल्वे स्टेशन पर घूम रही थी। पुलिस को शक है कि किसी की जेब काटने की फिराक में थी। इसी संदेह पर पोलिस ने पकड़ कर यहां ला रखा है।
पांच महीने से पड़ी है- अभी तक मजिस्टे्रट ने छोड़ने की अनुमति नहीं दी है। कच्ची कैदी है।''
लड़की ने रो रोकर मुझसे गुहार लगाई- मैं निर्दोष हूं। छोटा भाई खो गया था। उसी को स्टेशन पर घूम-घूम कर खोज रही थी। मुझे छुड़ाओ। अब तक तो भाई भी वहां गुम हो गया होगा। मैं देश की आला अफसर तब भी कुछ नहीं कर पाई थी। और, आज भी नहीं ! सो यह लड़की और उस जैसे सैकड़ों बच्चे आज भी हमारे जेलों में केवल पुलिस की शक के आधार पर सड़ रहे हैं और ए राजा द्वारा सेंध लगाया माल दूसरे खरीदारों की जेब में मुनाफे भर रहा है।
यही है हमारा अर्थशास्त्र । चालीस चोर लुटेरों से मिलकर खजाना भरो और देश को बेवकूफ बनाओं- कि देखो कितना खजाना इकट्ठा हुआ है । कार्पोरेट सेक्टर को खूब चोरी करने दो और उनकी सोने की जगमगाहट लोगों को दिखाकर कहो- देखो देश कितना तरक्की कर रहा है- हमारे इन चोर, लुटरों की बदौलत संसार के पांच सौ सबसे धनिक व्यक्तियों में हमारे देशवासियों की गिनती होती है।
बोलो लूटने वालों की जय । वह जेल की लड़की निकम्मी थी - गरीब ही रही, नीरा राडिया न बन सकी -- सो उसकी पराजय ।
--------------------------------------------------------------------------------------------------
Comments