वित्त मंत्रालयके घोटाले देशबन्धू 12 जुलाई 2014 -डीटीपी व चित्रप्रत

वित्त मंत्रालयके घोटाले देशबन्धू 12 जुलाई 2014 

वित्त मंत्रालयके घोटाले

देशमें जब २ जी स्कैम होता है, सीडब्ल्यूजी या कोलगेट स्कैम होता है, तो जनता जान पाती है कि उन घोटालोंके पीछे कौन मंत्री या कौनसे विभागके अधिकारी थे। ऐसे स्कैम तत्काल न सही परन्तु ३-४ वर्षोंमें बाहर आ जाते हैं। क्योंकी कई बार तो ( सीएजी) कैग ही अपने ऑडिटमें उनका पर्दाफाश करती है। परन्तु वित्त मंत्रालयके घोटाले प्रकट नही होते। इसका एक कारण यह भी है कि घोटालेकी व्याख्या ही इस प्रकार की जाती है ताकि वित्त मंत्रालयकी गलतियां या घोटालेको घोटाला माना ही न जाय। इस प्रकार व्याख्या करने वालोंपर प्रश्न भी नही उठायें जाते. क्योंकि उनके पास हावर्ड वर्ल्ड बॅंक, आयएमएफ आदि संस्थानोंके ठप्पे होते हैं, भले ही उन संस्थाओंमें लागू होने वाली सच्चाई या ईमानदारी इनके पास हो या ना हो।

वित्त मंत्रालयमें घोटालोंका एक सरल तरीका है। अपनी मर्जीके किसीको सरकारी तिजोरीसे विभिन्न रूपसे कर्जा इत्यादि देकर फिर उसे छूट दी जाय – तुम इसे वापस मत करना, तुम लूट कर लो, हम उसे छूट बना देंगे। हमें चैंलेंज करनेवाला कौन है। उस पर तुर्रा यह कि हम देशवासियोंको कह देंगे कि अभी अपना देश आर्थिक कठिनाइयोंसे जूझ रहा है, प्रत्येकको थोडासा त्याग करना ही पडेगा।

यह सही है कि छोटा किसान, छोटा कारीगर, छोटी इण्ड्रस्टी या छोटे व्यवसाय करनेवाले के लिए सरकार कभी-कभी कर्जमाफी जाहिर कर देती है। लेकिन वह जाहिर हो तब तक कई आत्महत्याएं अवश्य हो चुकी होती हैं। फिर कर्जमाफीका रिकार्ड भी जल्दी नही बनता। बँकसे उनका खाता क्लीयर होनेमें काफी समय निकल जाता है। तब तक वे दूसरा कोई कर्जं नही उठा सकते। लेकिन यदी आप बडे हों, धनी हों, वीआईपी हों, तो खेलके नियम बदल जाते हैं। आपको आत्महत्याकी नौंबत ही नही आ सकतीं। दिवालिया घोषित हो जानेसे काम बन जाता है, और आप अपने राजमहलोंमें अपने ऐश – आराम अपनी व्हीस्की, अपने कुत्ते, अपने फ्रेंडसके साथ मौज मस्ती करने के लिये मुक्त रहते हैं। आपको दिवालिया घोषित होनेमें संकोच हो तो कर्जमाफीकी व्यवस्था भी तत्काल हो सकती है। आपके लॉनकी एक घासकी गठरीके एवजमें भी आपका पुराना कर्ज और उसका बकाया ब्याज लम्बी अवधीके कर्जके रूपमें एडजस्ट कर दिया जा सकता है। इस नये कर्ज में ही पुराना कर्ज वसूल दिखाया जाता है। इसे कामको निपटानेके लिये आप जितने बडे और पहुँचवाले हों उतना ही कम समय लगेगा। और यदि आप बहुत ही बडे हो तो आपके पुराने कर्जको सरकार छूट शीर्षकमें दिखायेगी। इसके लिये केवल आपका बहुत बडा होना जरूरी है। छूटका एक सुन्दर नाम है एनपीए अर्थात नान् परफार्मिंग असेट्स अर्थात बँक जाहिर कर देती है कि अमुक व्यक्तिसे वसुली नहीं हो सकती , उसे बँकके नुकसान में दिखाया जाय।

और बहुत बडा होनेके लिये भी कोई बहुत जुगाड नहीं चाहिये। बस आप थोडेसे हेलीकॉप्टर या छोटे विमान खरीद लें और मंत्री या उच्च अफसर जब चाहें उसे मुहैय्या कराइये। ये विमान इत्यादि रखनेके लिये आप हवाई अड्डोंका इस्तेमाल कर सकते हैं। और वहींके फ्युएल पंप चलानेवाली कंपनियोंसे फ्युएल उधारीमें ले सकते हैं। बादमें यह हवाई अड्डेका भाडा और फ्युएलकी उधारीमें भी छूट मिल ही जायगी। तो बस हवाई जहाज रखो, मंत्रीजीको सफरके लिये देते रहे और वित्तमंत्री आपके बडप्पनको महसुस करते हुए तत्काल आपको हर प्रकार की कर्जमाफी दे सकते हैं।

सबसे बडी बात कि वित्तमंत्रीको जनताको बताना नहीं पडता कि किस- किस बडे व्यक्तिको कर्जमाफी दी गई। आजतक जब भी बजट पेश हुआ, किसीने भी वित्त मंत्रीसे यह नहीं पूछा कि आपने किस किसको बडी एवं व्यक्तिगत कर्जमाफी या छूट दी है। न संसद पर बजटकी बहसमें और न संसदके बाहर। छोटे- मोटे व्यापारियोंसे तो विक्रीकर वसूली तत्काल की जाती है, किसानोंसे कृषीकर अवश्य वसूला जाता है, पांच- दस लाख रूपये वार्षिक आय वाले नौकरीपेशा लोगोंसे इन्कम टैक्सका भुगतान तनख्वाहमें से ही हो जाता है। यही नहीं, छोटी- मोटी बचतमें एफडी करने वाले पेंशनरोंके ब्याज पर भी इन्कम टैक्स लागू होता है। लेकिन यदि आप महान व्यक्ती हैं तो आपक इन्कम टैक्स माफ हो जाता है या आप उसे बकाया रख सकते हैं और वित्तमंत्री आपका नाम भी बजट के समय सामने नहीं आने देंगें।

आज देशमें एक लाख के आसपास कॉलेजेस हैं जहां इकानॉमिक्स पढाई जाती है, पीएचडीके स्टूडेण्ट्स हैं, रिटायर्ड बँक व इन्कम टैक्स अधिकारी हैं। इनमें कई ईमानदार लोग हैं। और इन्हें एक्सपर्ट भी माना जायेगा। तो इनका आग्रह होना चाहिये कि सरकार जाहिर करे कि ऐसे कौन- कौन व्यक्ति हैं जिन्हें सरकारने एकसौ करोडसे अधिक छूट या कर्जमाफी दी है। या उनका इन्कम टैक्स बकाया एकसौ करोड से अधिक है, भले ही उसे अभीतक केसमें उलझाकर रखा गया हो।

केसमें उलझाना कैसे – तो करोडोंका इन्कम टैक्स बकाया रखने वाले और ये चाल चलते हैं। ये इन्कम टैक्सका क्लेम अमान्य करते हैं, इन्कम टैक्स अपीलेट ट्रिब्नुलमें केस फाइल कर देते हैं। और उसे लम्बी अवधि तक पेडिंग रखवा देते हैं। उनके वकील भी अक्सर वित्त मंत्रालयमें बैठें लोगोंके दोस्त, रिश्तेदार होते हैं। आपके बँक कर्जेंको एनपीए घोषित करनेमें भी ये वकील सहायता करते हैं।

इन दोनों मुद्दोंपर देशका जो पैसा डूब जाता है, उसे वित्त मंत्रालय जाहिर नहीं करता न जाहिर होने देता है। लेकिन वास्तवमें यही वह रकम है जो कुछ बडे व्यक्तियोंको धनी बनाती हैं, जब कि बाकी सारे लोग महंगाईकी मार झेलनेको विवश हो जाते हैं। केवल इसलिये कि वित्त मंत्रालयके दिग्गज अर्थशास्त्रियोंकी व्याख्यामें इसे लूटकी जगह छूटा कहा जाता है।

आज देश में एक लाख के आसपास कॉलेजेस हैं जहां इकानॉमिक्स पढाई जाती है, पीएचडी के स्टूडेण्ट्स है, रिटायर्ड बँक व इन्कम टैक्स अधिकारी हैं। इनमें कई ईमानदार लोग है और उन्हें एक्सपर्ट भी माना जायेगा। तो इनका आग्रह होना चाहिये कि सरकार जाहिर करे कि ऐसे कौन- कौन व्यक्ति हैं जिन्हें सरकार ने एकसौ करोड से अधिक छूटा या कर्जमाफी दी है या उनका इन्कम टैक्स बकाया एकसौ करोड से अधिक है। (लीना मेहेंदले)

देशमें कैग अर्थात कम्प्ट्रोलर एण्ड ऑडिटर जनरल ऑफ इंडिया नामक एक संस्था है जो संविधानके अंतर्गत बनी है, इसके सर्वोच्च अधिकारीको सुप्रीम कोर्टके जजका दर्जा, वेतन और अन्य सुविधाएं दी जाती हैं। इनकी रीपोर्ट सीधे संसदमें पेश होती है। ये २ जी इत्यादि स्कैम भी कैग के ही द्वार प्रकाशमें लाये गये। लेकिन आज तक कभी कैगने वित्त मंत्रालयका ऑडिट किया हो और बँकोंके नॉन परफॉर्मिंग असेट्स अथवा इन्कम टैक्स बकाया रखने वाली केसेसपर उंगली रखी हो ऐसा नहीं सुना। क्योंकि वे भी शायद वित्त मंत्रालयकी व्याख्याको माननेके लिये बाध्य हैं।

एक घटनाका स्मरण होता है, दो वर्ष पूर्व कोलकातामें इनकम टैक्स अपीलेट ट्रायब्युनल के ३-४ जजेस पर रिश्वत लेकर इन्कम टैक्सकी बडी- बडी छूटें देनेके मामलेमें कारवाई करनी पडी थी। तो अपेलेट कोर्टमें केस करनेसे ये फायदा होता है।

बजटके बाद महंगाईका बढाना सबको परेशान और त्रस्त कर देता है। लेकिन कोई नहीं जानता कि किसकी लूटको बचाने के लिये हमें महंगाई झेलनी पडती है। अतः यह मांग उचित है कि सरकार उन अरबपति बकायेदारोंके नाम गिनाये और उन्हें संरक्षण देनेवालोंके विरूद्ध भी कारवाई हो।



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