क्यूँ नही सरकार रद्द करती 2G Specrtum के गैरकानूनी व्यवहार
क्यूँ नही सरकार रद्द करती 2G Specrtum के गैरकानूनी व्यवहार
चलो, उतने महीने पहले चोरी की और देशद्रोह की, देश को लूटने की योजना की कोई रपट नहीं लिखी गई। तो क्या आज लिखी गई है ? और जिसने चोरी का माल पाया, और उससे पैसा बनाया, उनका क्या? क्या वह नहीं समझ रहे थे कि उन्हें चोरी का माल बेचा जा रहा है? बिलकुल समझ रहे थे, और उस चोरी को पचा लेने का दावा रखते थे। इसीलिए तो वे कार्पोरेट जगत के बेताज बादशाह थे।
लेकिन मियां गालिब, अब देश की जनता क्या करे? आप तो ठहरे शायर, आप क्या उत्तर देंगे। लेकिन मैं दे सकती हूं इसका उत्तर। उसी कांट्रक्ट ऍक्ट में मिलेगा, जिसके आधार पर खरीदारी, लेन-देन और कार्पोरेट जगत का व्यापार चलता है।
लेकिन इससे पहले हम एक नजर अपने लोकतंत्र और उसके बुनियादी सिध्दांतों की ओर डालें। हम भारतीय लोकतंत्र के लोग ही इस प्रणाली के शासक हैं- अपनी देश की संपत्ति के मालिक और रखवालदार । चुनाव में जो प्रतिनिधि जीतकर आते हैं, उनके सारे भाषण याद करिए- वो अपने आपको जनता का सेवक बताते हैं, न कि जनता का मालिक। और इस एक मामले में वे पूरे सत्यवादी हैं- क्योंकि वे वाकई जनता के सेवक हैं-नौकर हैं और यदि आप उन्हें थोड़ा ऊंचा रूतबा देना चाहते हैं तो कह सकते हैं कि वे जनता के प्रतिनिधि हैं- अर्थात एजेण्ट!
तो अब कॉण्ट्रॅक्ट ऍक्ट कहता है कि यदि किसी मालिक के लिए काम करने वाला एजेण्ट या नौकर फ्रॉड करता है, गबन करता है, चोरी करता है और अगर मालिक उस पर फ्रॉड, गबन या चोरी का मामला दर्ज करता है, तो फिर उस एजेण्ट के द्वारा किए गए दुष्कर्मों को निस्तार किया जा सकता है। मालिक ऐसे कामों की न्यायिक जिम्मेवारी से मुक्त हो जाता है और उस माल को वापस ले सकता है जो फ्रॉड और गबन के माध्यम से दूसरों को दिया गया।
लेकिन शर्त यह है कि पहले मालिक अपने एजेण्ट, नौकर या प्रतिनिधि के विरुध्द यह एफआईआर दर्ज करें कि उस एजेण्ट ने फ्रॉड, गबन किया है।
तो क्या इस देश की मालिक जनता सबसे पहले ए. राजा पर फ्रॉड और गबन का एफआईआर कर सकती है? पब्लिक सर्वेण्ट (शब्द को गौर करें- वह सर्वेण्ट है,) होने के नाते उसे यह संरक्षण मिला है कि जब तक देश के प्रधानमंत्री उस पर एफआईआर दर्ज कराने की अनुमति नहीं देते तब तक एफआईआर दर्ज नहीं हो सकती, और तब तक जिनके पास यह चोरी का माल और उसके फायदे पहुंचे हैं, उनसे आप वह माल वापस नहीं ले सकते।
सुब्रह्मण्यम स्वामी ने प्रधानमंत्री से इसी एफआईआर को दर्ज कराने की मांग या अनुमति चाही थी-नवम्बर 2008 में। जब कई महीनों अनुमति नहीं मिली तो सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। वह मुकदमा अभी चल रहा है, और प्रधानमंत्री ने राजा को हटा दिया है। अर्थात वह एजेण्ट के रूप में अगली चोरी या गबन नहीं कर सकेगा। लेकिन एफआईआर की अनुमति नहीं दे रहे। क्योंकि यह अनुमति देते हैं तो रिलायन्स समेत उन कई कार्पोरेट हाऊसेस से वसूली करनी पड़ेगी जिनके पास यह चोरी का माल है । जिस कार्पोरेट सेक्टर के आठ-नौ-दस प्रतिशत उछाल पर प्रधानमंत्री अपनी पीठ थपथपा रहे हैं वह उछाल धड़ाम से 2-3 पर आ गिरेगा।
मेरे दिमाग में बार-बार एक दृश्य घूम जाता है- नासिक कमिश्नर की हैसियत से मैं जेल विजिट कर रही थी। महिला कक्ष में एक बीस-बाइस वर्ष की कैदी थीं। उसका गुनाह पूछा तो पता चला ''कुछ नहीं -- रेल्वे स्टेशन पर घूम रही थी। पुलिस को शक है कि किसी की जेब काटने की फिराक में थी। इसी संदेह पर पोलिस ने पकड़ कर यहां ला रखा है।
पांच महीने से पड़ी है- अभी तक मजिस्टे्रट ने छोड़ने की अनुमति नहीं दी है। कच्ची कैदी है।''
लड़की ने रो रोकर मुझसे गुहार लगाई- मैं निर्दोष हूं। छोटा भाई खो गया था। उसी को स्टेशन पर घूम-घूम कर खोज रही थी। मुझे छुड़ाओ। अब तक तो भाई भी वहां गुम हो गया होगा। मैं देश की आला अफसर तब भी कुछ नहीं कर पाई थी। और, आज भी नहीं ! सो यह लड़की और उस जैसे सैकड़ों बच्चे आज भी हमारे जेलों में केवल पुलिस की शक के आधार पर सड़ रहे हैं और ए राजा द्वारा सेंध लगाया माल दूसरे खरीदारों की जेब में मुनाफे भर रहा है।
यही है हमारा अर्थशास्त्र । चालीस चोर लुटेरों से मिलकर खजाना भरो और देश को बेवकूफ बनाओं- कि देखो कितना खजाना इकट्ठा हुआ है । कार्पोरेट सेक्टर को खूब चोरी करने दो और उनकी सोने की जगमगाहट लोगों को दिखाकर कहो- देखो देश कितना तरक्की कर रहा है- हमारे इन चोर, लुटरों की बदौलत संसार के पांच सौ सबसे धनिक व्यक्तियों में हमारे देशवासियों की गिनती होती है।
बोलो लूटने वालों की जय । वह जेल की लड़की निकम्मी थी - गरीब ही रही, नीरा राडिया न बन सकी -- सो उसकी पराजय ।
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चलो, उतने महीने पहले चोरी की और देशद्रोह की, देश को लूटने की योजना की कोई रपट नहीं लिखी गई। तो क्या आज लिखी गई है ? और जिसने चोरी का माल पाया, और उससे पैसा बनाया, उनका क्या? क्या वह नहीं समझ रहे थे कि उन्हें चोरी का माल बेचा जा रहा है? बिलकुल समझ रहे थे, और उस चोरी को पचा लेने का दावा रखते थे। इसीलिए तो वे कार्पोरेट जगत के बेताज बादशाह थे।
लेकिन मियां गालिब, अब देश की जनता क्या करे? आप तो ठहरे शायर, आप क्या उत्तर देंगे। लेकिन मैं दे सकती हूं इसका उत्तर। उसी कांट्रक्ट ऍक्ट में मिलेगा, जिसके आधार पर खरीदारी, लेन-देन और कार्पोरेट जगत का व्यापार चलता है।
लेकिन इससे पहले हम एक नजर अपने लोकतंत्र और उसके बुनियादी सिध्दांतों की ओर डालें। हम भारतीय लोकतंत्र के लोग ही इस प्रणाली के शासक हैं- अपनी देश की संपत्ति के मालिक और रखवालदार । चुनाव में जो प्रतिनिधि जीतकर आते हैं, उनके सारे भाषण याद करिए- वो अपने आपको जनता का सेवक बताते हैं, न कि जनता का मालिक। और इस एक मामले में वे पूरे सत्यवादी हैं- क्योंकि वे वाकई जनता के सेवक हैं-नौकर हैं और यदि आप उन्हें थोड़ा ऊंचा रूतबा देना चाहते हैं तो कह सकते हैं कि वे जनता के प्रतिनिधि हैं- अर्थात एजेण्ट!
तो अब कॉण्ट्रॅक्ट ऍक्ट कहता है कि यदि किसी मालिक के लिए काम करने वाला एजेण्ट या नौकर फ्रॉड करता है, गबन करता है, चोरी करता है और अगर मालिक उस पर फ्रॉड, गबन या चोरी का मामला दर्ज करता है, तो फिर उस एजेण्ट के द्वारा किए गए दुष्कर्मों को निस्तार किया जा सकता है। मालिक ऐसे कामों की न्यायिक जिम्मेवारी से मुक्त हो जाता है और उस माल को वापस ले सकता है जो फ्रॉड और गबन के माध्यम से दूसरों को दिया गया।
लेकिन शर्त यह है कि पहले मालिक अपने एजेण्ट, नौकर या प्रतिनिधि के विरुध्द यह एफआईआर दर्ज करें कि उस एजेण्ट ने फ्रॉड, गबन किया है।
तो क्या इस देश की मालिक जनता सबसे पहले ए. राजा पर फ्रॉड और गबन का एफआईआर कर सकती है? पब्लिक सर्वेण्ट (शब्द को गौर करें- वह सर्वेण्ट है,) होने के नाते उसे यह संरक्षण मिला है कि जब तक देश के प्रधानमंत्री उस पर एफआईआर दर्ज कराने की अनुमति नहीं देते तब तक एफआईआर दर्ज नहीं हो सकती, और तब तक जिनके पास यह चोरी का माल और उसके फायदे पहुंचे हैं, उनसे आप वह माल वापस नहीं ले सकते।
सुब्रह्मण्यम स्वामी ने प्रधानमंत्री से इसी एफआईआर को दर्ज कराने की मांग या अनुमति चाही थी-नवम्बर 2008 में। जब कई महीनों अनुमति नहीं मिली तो सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। वह मुकदमा अभी चल रहा है, और प्रधानमंत्री ने राजा को हटा दिया है। अर्थात वह एजेण्ट के रूप में अगली चोरी या गबन नहीं कर सकेगा। लेकिन एफआईआर की अनुमति नहीं दे रहे। क्योंकि यह अनुमति देते हैं तो रिलायन्स समेत उन कई कार्पोरेट हाऊसेस से वसूली करनी पड़ेगी जिनके पास यह चोरी का माल है । जिस कार्पोरेट सेक्टर के आठ-नौ-दस प्रतिशत उछाल पर प्रधानमंत्री अपनी पीठ थपथपा रहे हैं वह उछाल धड़ाम से 2-3 पर आ गिरेगा।
मेरे दिमाग में बार-बार एक दृश्य घूम जाता है- नासिक कमिश्नर की हैसियत से मैं जेल विजिट कर रही थी। महिला कक्ष में एक बीस-बाइस वर्ष की कैदी थीं। उसका गुनाह पूछा तो पता चला ''कुछ नहीं -- रेल्वे स्टेशन पर घूम रही थी। पुलिस को शक है कि किसी की जेब काटने की फिराक में थी। इसी संदेह पर पोलिस ने पकड़ कर यहां ला रखा है।
पांच महीने से पड़ी है- अभी तक मजिस्टे्रट ने छोड़ने की अनुमति नहीं दी है। कच्ची कैदी है।''
लड़की ने रो रोकर मुझसे गुहार लगाई- मैं निर्दोष हूं। छोटा भाई खो गया था। उसी को स्टेशन पर घूम-घूम कर खोज रही थी। मुझे छुड़ाओ। अब तक तो भाई भी वहां गुम हो गया होगा। मैं देश की आला अफसर तब भी कुछ नहीं कर पाई थी। और, आज भी नहीं ! सो यह लड़की और उस जैसे सैकड़ों बच्चे आज भी हमारे जेलों में केवल पुलिस की शक के आधार पर सड़ रहे हैं और ए राजा द्वारा सेंध लगाया माल दूसरे खरीदारों की जेब में मुनाफे भर रहा है।
यही है हमारा अर्थशास्त्र । चालीस चोर लुटेरों से मिलकर खजाना भरो और देश को बेवकूफ बनाओं- कि देखो कितना खजाना इकट्ठा हुआ है । कार्पोरेट सेक्टर को खूब चोरी करने दो और उनकी सोने की जगमगाहट लोगों को दिखाकर कहो- देखो देश कितना तरक्की कर रहा है- हमारे इन चोर, लुटरों की बदौलत संसार के पांच सौ सबसे धनिक व्यक्तियों में हमारे देशवासियों की गिनती होती है।
बोलो लूटने वालों की जय । वह जेल की लड़की निकम्मी थी - गरीब ही रही, नीरा राडिया न बन सकी -- सो उसकी पराजय ।
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