राजभाषा हिन्दी से संबंधित जो काम मैंने किए
राजभाषा हिन्दी से संबंधित किए गए काम
जन्मतिथि : 31 जनवरी, 1950
जन्मस्थल : धरणगाँव (महाराष्ट्र)
शिक्षा : एम.एस-सी. (भौतिकी), पटना विश्र्वविद्यालय,
एम.एस-सी. प्रोजेक्ट प्लानिंग, ब्रेडफोर्ड विश्र्वविद्यालय, इंग्लैंड
कार्यक्षेत्र :क) मगध महिला कॉलेज, पटना में एक वर्ष फिजिक्स प्रवक्ता
ख) सन 1974 में भारतीय प्रशासनिक सेवा में प्रवेश और महाराष्ट्र
में कार्यरत. महाराष्ट्र सरकार में कलेक्टर, कमिशनर पर्दो पर कार्य किया.
ग) सांगली के जिलाधिकारी के पदसे चलाया गया देवदासी आर्थिक पुनर्वास
कार्यक्रम देश-विदेश मे काफी सराहा गया.
घ) ग्राम विकास, उद्योग, कृषि, महसूल व केंद्र शासनमें स्वास्थ, महिला कल्याण व
पेट्रोलियम विभागों मे कार्य किया
ड) संप्रति अतिरिक्त मुख्य सचिव (सामान्य प्रशासन)
पुस्तकें : मराठी भाषामें छः पुस्तके प्रकाशित
हिंदी :--
फिर वर्षा आई बाल-कथा-संग्रह -- 1998
देवदासी : जिल्हा सांगली में कलेक्टर के पदसे देवदासी प्रथा-निर्मूलन बाबत जो कार्य
किया उसकी कहानी --1999
आनन्दलोक: ज्ञानपीठ विजेता मराठी कवि कुसुमाग्रज की 108 कविताओं
का हिन्दी अनुवाद -- 2003
सुवर्ण पंछी : पशु-पक्षियों के रोचक संदर्भ --2001
हमारा दोस्त टोटो : पशु प्रेम पर आधारित कथा --2001
शीतला माता : चेचक की रोकथाम कें लिये सतहरवी/अठाहरवी सदीमे
भारत में प्रचलित वॅक्सिनेशन के कार्यक्रम बाबत--2001
एक था फेंगाड्या : डॉ.गद्रे के मराठी उपन्यास का अनुवाद: भारतीय ज्ञानपीठ
व्दारा प्रकाशित--2006
मन ना जाने मन को : विभिन्न भारतीय भाषाओ से हिन्दी मे अनुवादित
कथासंग्रह--2005
जनता की राय : विभिन्न अखबारो मे प्रकाशित लेखों का संग्रह
है कोई वकील लोकतंत्रका : विभिन्न अखबारो मे प्रकाशित लेखों का संग्रह
मेरी प्रांतसाहबी : विभिन्न अखबारो मे प्रकाशित लेखों का संग्रह
युगंधरा : महिला सक्षमीकरण विषय पर लेखन स्पर्धा में प्राप्त लेखों का
संकलन व संपादन
रेडिओ एवं टीव्ही माध्यम में प्रस्तुती :
बूंद बूंद की बात : ऊर्जा संरक्षण तथा पेट्रोलियम संरक्षण जैसे गहन वैज्ञानिक
विषयों की नाट्य रूपमे रेडियो पर संकल्पना व (पुस्तक)
ऐसे 180 कार्यक्रमों की मालिका ऑल इंडिया रेडियो से चलाई.
(पुस्तक) बूंद बूंद की बात : साथ ही उनमेसे 20 नाट्य पुस्तक रूपमे प्रकाशित--2004
खेल खेल में बदलो दुनिया : DD-1 के लिये ऊर्जा व पेट्रोलियम संदक्षण जैसे गहन
वैज्ञानिक विषयपर आधारित प्रति आधे घंटे की मालिका
150 एपिसोड की संकल्पना एवं प्रस्तुती.
संरक्षण योग : भगवत् गीता के "योग: कर्मसु कौशलम्" संदेश को
पर्यावरण सुरक्षा व ऊर्जा संरक्षण से जोडते हुए कर्म-कुशलता का
संदेश देनेवाली प्रति 15 मिनिट की मालिका में 75 एपिसोड
संकल्पना एवं प्रस्तुती.
संपादन : मासिक पत्रिका निसर्गोपचार वार्ता (1991 से 1994) तथा संरक्षण चेतना (2002 से 2005) का संपादन
लेख : हिन्दी में 300 से अधिक
प्रमुख हिन्दी समाचार पत्र यथा हिन्दुस्तान (दिल्ली), जनसत्ता (दिल्ली), नवभारत टाईम्स (दिल्ली), राष्ट्रीय सहारा (दिल्ली ), देशबंधु ( रायपूर ), महानगर ( मुंबई), प्रभात खबर (रांची ) तथा प्रमुख मासिक पत्रिका - नया ज्ञानपीठ, हंस, अक्षर पर्व, कथादेश, इंद्रप्रस्थ भारती, समकालीन साहित्य इत्यादि मं प्रकाशित !
भाषण : हिन्दी राजभाषासे संबंधित विभिन्न करीब 20 कार्यक्रमो में अध्यक्षता अथवा
मंचीय सदस्यता एवं भाषण
संगणक मे लीप ऑफिस के माध्यम से हिन्दी टायपिंग सीखने के लिये 20 मिनिटकी फिल्म का निर्माण
सम्मान : इफको संस्थाव्दारा सम्मान एवं रु. 11,000/- का पुरस्कार.
छठवें विश्र्व हिन्दी संम्मेलन सुरीनाम में भाग लेकर
क) कम्प्युटर मे हिन्दी के प्रयोगसंबंधी चर्चा में सहभाग व भाषण
ख) युनायटेड नेशन्स मे हिन्दी प्रस्थापित करते हेतु चर्चा मे सहभाग
भाषा - ज्ञान :
हिन्दी, मराठी, बंगाली, नेपाली, मैथिली, भोजपूरी, पंजाबी, गुजराथी, उडिया और
कोंकणी भाषाओं का ज्ञान.
इसके अलावा मराठी एवं अंग्रेजी में भी कई पुस्तके तथा 200 से अधिक लेख प्रकाशित
वेबसाईट हिन्दी और अंग्रेजी में -- http:// www.leenamehendale.com से देखी जा सकती है।
---------------------------------------------------------------------------
हिंदी और सारी भारतीय भाषाओं के लिये तत्काल जो करने की आवश्यकता है, वह है संगणक के लिये भारतीय वर्णमाला का प्रामाणिकीकरण और अपने फॉण्टसेटस् के सोर्सकोड को प्रगट करना | भारतीय लिपि संगणक पर चढाने के लिये अब तक कइयों ने कई फ़ॉण्टसेट बनाये, उनके लिये आवश्यक कुज्जियाँ भी बनाईं. लेकिन उन्हें टॉप सीक्रेट घोषित कर व्यापार किया | खुद भारत सरकार की संस्था सी-डॅक ने ऐसे कई फॉण्टसेट बनाये और सबकी अलग-अलग मार्केटिंग करके पैसा कमाने के चक्कर में उनका एक-दूसरे से कोई मेल नहीं रख्खा | इसका दुष्परिणाम यह हुआ कि हिंदी का कोई भी कुग्जीपटल लेकर आप छाती ठोककर नही कह सकते की यह दुनियाँ के हर संगणक पर पढा जा सकेगा | फलत: आज विश्वके सभी प्रगत संगणकोंपर क्लिक के एक बटन से आपको चीनी, अरेबिक, हेब्रु, स्वाहिली, रशियन जैसी क्लिष्ट लिपियाँ मिल जायेंगी- लेकिन कोई भी भारतीय भाषा देखने को नही मिलेगी| भला हो लीनक्स जैसी विदेशी कंपनी का (स्वदेशी वाले ध्यान दें) जिसने भारत की उसी सरकारी संस्थाको पैसे देकर हर भारतीय भाषा के लिये एक-एक फॉण्ट बनवाया, वह भी इस तरह कि हर भारतीय लिपी के लिये वर्णमाला का एक अक्षर एक ही जगह हो | फिर यह फाण्टसेंट उन्होंने अपनी तरफसे दुनियाँ भर के लिये ओपन कर दिया, आज वह कुछ कुछ अधूरा सही, फिर भी युनिकोड का हिस्सा बन गया | इससे मजबूर होकर मायक्रोसॉफ्ट को भी वही फॉण्टसेट अपनी सिस्टम में अपनाना पड़ा ताकि इंडियन मार्केट हाथसे न निकल आये | गुगल, याहू इत्यादि पर यह हिंदी फॉण्टसेट मंगल नाम से उपलब्ध है और इसको प्रयुक्त कर लिखा गया कोई भी परिच्छेद एक क्लिकभरसे मलयाली, बंगाली इत्यादि लिपियोंमें उपलब्ध हो जाता है| इसके बावजूद भारत की फॉण्ट विकसित करनेवाली कोई भी कंपनी या स्वयं सरकारी कंपनी अपने बाकी फॉण्ट-सेट का सोर्स-कोड ओपन नही कर रहे। यदि वे करें तो भारतीय भाषाई क्षेत्र में काम करनेवाले लाखों-करोडों प्रकाशकों और पाठकों को फायदा मिले| भाषाएँ बचाने के लिये केवल देशप्रेम के अलावा यह बाजार- नियोजन भी आवश्यक है लेकिन अफसोस कि इस खतरे से न तो भाषाप्रेमी अवगत हैं, न सरकार चिन्तित है| अब तो यह सलाह दी जाने लगी है कि हमने तो फोनेटिक तरीका भी बनाकर आपके देशको दिया है, सो अपनी लिपियों का आग्रह छोड दें। हिंदी का गौरव बनाये रखने के लिये यह अत्यावश्यक है कि संगणक की युग-प्रवर्तक तकनीक का फायदा हमारी भाषा को मिले | इसके लिये हर भाषाप्रेमी को चेतना पडेगा।
-- लीना मेहेन्दले, दि. 2 अक्तूबर, गांधी जयंति, 2009
जन्मतिथि : 31 जनवरी, 1950
जन्मस्थल : धरणगाँव (महाराष्ट्र)
शिक्षा : एम.एस-सी. (भौतिकी), पटना विश्र्वविद्यालय,
एम.एस-सी. प्रोजेक्ट प्लानिंग, ब्रेडफोर्ड विश्र्वविद्यालय, इंग्लैंड
कार्यक्षेत्र :क) मगध महिला कॉलेज, पटना में एक वर्ष फिजिक्स प्रवक्ता
ख) सन 1974 में भारतीय प्रशासनिक सेवा में प्रवेश और महाराष्ट्र
में कार्यरत. महाराष्ट्र सरकार में कलेक्टर, कमिशनर पर्दो पर कार्य किया.
ग) सांगली के जिलाधिकारी के पदसे चलाया गया देवदासी आर्थिक पुनर्वास
कार्यक्रम देश-विदेश मे काफी सराहा गया.
घ) ग्राम विकास, उद्योग, कृषि, महसूल व केंद्र शासनमें स्वास्थ, महिला कल्याण व
पेट्रोलियम विभागों मे कार्य किया
ड) संप्रति अतिरिक्त मुख्य सचिव (सामान्य प्रशासन)
पुस्तकें : मराठी भाषामें छः पुस्तके प्रकाशित
हिंदी :--
फिर वर्षा आई बाल-कथा-संग्रह -- 1998
देवदासी : जिल्हा सांगली में कलेक्टर के पदसे देवदासी प्रथा-निर्मूलन बाबत जो कार्य
किया उसकी कहानी --1999
आनन्दलोक: ज्ञानपीठ विजेता मराठी कवि कुसुमाग्रज की 108 कविताओं
का हिन्दी अनुवाद -- 2003
सुवर्ण पंछी : पशु-पक्षियों के रोचक संदर्भ --2001
हमारा दोस्त टोटो : पशु प्रेम पर आधारित कथा --2001
शीतला माता : चेचक की रोकथाम कें लिये सतहरवी/अठाहरवी सदीमे
भारत में प्रचलित वॅक्सिनेशन के कार्यक्रम बाबत--2001
एक था फेंगाड्या : डॉ.गद्रे के मराठी उपन्यास का अनुवाद: भारतीय ज्ञानपीठ
व्दारा प्रकाशित--2006
मन ना जाने मन को : विभिन्न भारतीय भाषाओ से हिन्दी मे अनुवादित
कथासंग्रह--2005
जनता की राय : विभिन्न अखबारो मे प्रकाशित लेखों का संग्रह
है कोई वकील लोकतंत्रका : विभिन्न अखबारो मे प्रकाशित लेखों का संग्रह
मेरी प्रांतसाहबी : विभिन्न अखबारो मे प्रकाशित लेखों का संग्रह
युगंधरा : महिला सक्षमीकरण विषय पर लेखन स्पर्धा में प्राप्त लेखों का
संकलन व संपादन
रेडिओ एवं टीव्ही माध्यम में प्रस्तुती :
बूंद बूंद की बात : ऊर्जा संरक्षण तथा पेट्रोलियम संरक्षण जैसे गहन वैज्ञानिक
विषयों की नाट्य रूपमे रेडियो पर संकल्पना व (पुस्तक)
ऐसे 180 कार्यक्रमों की मालिका ऑल इंडिया रेडियो से चलाई.
(पुस्तक) बूंद बूंद की बात : साथ ही उनमेसे 20 नाट्य पुस्तक रूपमे प्रकाशित--2004
खेल खेल में बदलो दुनिया : DD-1 के लिये ऊर्जा व पेट्रोलियम संदक्षण जैसे गहन
वैज्ञानिक विषयपर आधारित प्रति आधे घंटे की मालिका
150 एपिसोड की संकल्पना एवं प्रस्तुती.
संरक्षण योग : भगवत् गीता के "योग: कर्मसु कौशलम्" संदेश को
पर्यावरण सुरक्षा व ऊर्जा संरक्षण से जोडते हुए कर्म-कुशलता का
संदेश देनेवाली प्रति 15 मिनिट की मालिका में 75 एपिसोड
संकल्पना एवं प्रस्तुती.
संपादन : मासिक पत्रिका निसर्गोपचार वार्ता (1991 से 1994) तथा संरक्षण चेतना (2002 से 2005) का संपादन
लेख : हिन्दी में 300 से अधिक
प्रमुख हिन्दी समाचार पत्र यथा हिन्दुस्तान (दिल्ली), जनसत्ता (दिल्ली), नवभारत टाईम्स (दिल्ली), राष्ट्रीय सहारा (दिल्ली ), देशबंधु ( रायपूर ), महानगर ( मुंबई), प्रभात खबर (रांची ) तथा प्रमुख मासिक पत्रिका - नया ज्ञानपीठ, हंस, अक्षर पर्व, कथादेश, इंद्रप्रस्थ भारती, समकालीन साहित्य इत्यादि मं प्रकाशित !
भाषण : हिन्दी राजभाषासे संबंधित विभिन्न करीब 20 कार्यक्रमो में अध्यक्षता अथवा
मंचीय सदस्यता एवं भाषण
संगणक मे लीप ऑफिस के माध्यम से हिन्दी टायपिंग सीखने के लिये 20 मिनिटकी फिल्म का निर्माण
सम्मान : इफको संस्थाव्दारा सम्मान एवं रु. 11,000/- का पुरस्कार.
छठवें विश्र्व हिन्दी संम्मेलन सुरीनाम में भाग लेकर
क) कम्प्युटर मे हिन्दी के प्रयोगसंबंधी चर्चा में सहभाग व भाषण
ख) युनायटेड नेशन्स मे हिन्दी प्रस्थापित करते हेतु चर्चा मे सहभाग
भाषा - ज्ञान :
हिन्दी, मराठी, बंगाली, नेपाली, मैथिली, भोजपूरी, पंजाबी, गुजराथी, उडिया और
कोंकणी भाषाओं का ज्ञान.
इसके अलावा मराठी एवं अंग्रेजी में भी कई पुस्तके तथा 200 से अधिक लेख प्रकाशित
वेबसाईट हिन्दी और अंग्रेजी में -- http:// www.leenamehendale.com से देखी जा सकती है।
---------------------------------------------------------------------------
हिंदी और सारी भारतीय भाषाओं के लिये तत्काल जो करने की आवश्यकता है, वह है संगणक के लिये भारतीय वर्णमाला का प्रामाणिकीकरण और अपने फॉण्टसेटस् के सोर्सकोड को प्रगट करना | भारतीय लिपि संगणक पर चढाने के लिये अब तक कइयों ने कई फ़ॉण्टसेट बनाये, उनके लिये आवश्यक कुज्जियाँ भी बनाईं. लेकिन उन्हें टॉप सीक्रेट घोषित कर व्यापार किया | खुद भारत सरकार की संस्था सी-डॅक ने ऐसे कई फॉण्टसेट बनाये और सबकी अलग-अलग मार्केटिंग करके पैसा कमाने के चक्कर में उनका एक-दूसरे से कोई मेल नहीं रख्खा | इसका दुष्परिणाम यह हुआ कि हिंदी का कोई भी कुग्जीपटल लेकर आप छाती ठोककर नही कह सकते की यह दुनियाँ के हर संगणक पर पढा जा सकेगा | फलत: आज विश्वके सभी प्रगत संगणकोंपर क्लिक के एक बटन से आपको चीनी, अरेबिक, हेब्रु, स्वाहिली, रशियन जैसी क्लिष्ट लिपियाँ मिल जायेंगी- लेकिन कोई भी भारतीय भाषा देखने को नही मिलेगी| भला हो लीनक्स जैसी विदेशी कंपनी का (स्वदेशी वाले ध्यान दें) जिसने भारत की उसी सरकारी संस्थाको पैसे देकर हर भारतीय भाषा के लिये एक-एक फॉण्ट बनवाया, वह भी इस तरह कि हर भारतीय लिपी के लिये वर्णमाला का एक अक्षर एक ही जगह हो | फिर यह फाण्टसेंट उन्होंने अपनी तरफसे दुनियाँ भर के लिये ओपन कर दिया, आज वह कुछ कुछ अधूरा सही, फिर भी युनिकोड का हिस्सा बन गया | इससे मजबूर होकर मायक्रोसॉफ्ट को भी वही फॉण्टसेट अपनी सिस्टम में अपनाना पड़ा ताकि इंडियन मार्केट हाथसे न निकल आये | गुगल, याहू इत्यादि पर यह हिंदी फॉण्टसेट मंगल नाम से उपलब्ध है और इसको प्रयुक्त कर लिखा गया कोई भी परिच्छेद एक क्लिकभरसे मलयाली, बंगाली इत्यादि लिपियोंमें उपलब्ध हो जाता है| इसके बावजूद भारत की फॉण्ट विकसित करनेवाली कोई भी कंपनी या स्वयं सरकारी कंपनी अपने बाकी फॉण्ट-सेट का सोर्स-कोड ओपन नही कर रहे। यदि वे करें तो भारतीय भाषाई क्षेत्र में काम करनेवाले लाखों-करोडों प्रकाशकों और पाठकों को फायदा मिले| भाषाएँ बचाने के लिये केवल देशप्रेम के अलावा यह बाजार- नियोजन भी आवश्यक है लेकिन अफसोस कि इस खतरे से न तो भाषाप्रेमी अवगत हैं, न सरकार चिन्तित है| अब तो यह सलाह दी जाने लगी है कि हमने तो फोनेटिक तरीका भी बनाकर आपके देशको दिया है, सो अपनी लिपियों का आग्रह छोड दें। हिंदी का गौरव बनाये रखने के लिये यह अत्यावश्यक है कि संगणक की युग-प्रवर्तक तकनीक का फायदा हमारी भाषा को मिले | इसके लिये हर भाषाप्रेमी को चेतना पडेगा।
-- लीना मेहेन्दले, दि. 2 अक्तूबर, गांधी जयंति, 2009
Comments