शिव और राम - उपास्य या मिथ्या? क्या कहते हैं हमारे विद्यालय?
शिव और राम - उपास्य या मिथ्या ? क्या कहते हैं हमारे विद्यालय ? - लीना मेहेंदळे भारतीय वाङ्मयमें एक गलत शब्द घुस गया है -- मायथोलॉजी या मिथक । यह अब हमारे विद्यापीठोंमें भी धडल्लेसे सुप्रतिष्ठित हो रहा है । भारतकी कई युनिवर्सिटियोंमें मायथोलॉजीके क्रॅश कोर्समें रुद्रको मिथिकल चरित्रके रूपमें पढाया जाने लगा है। यह हमारी उपासना - आधारित संस्कृतिको गहरी चुनौती है। क्या भारत झेल पायेगा ये चुनौती ? आज उसीका परामर्श लेना है। विश्वभरकी सारी सभ्यताओंका ब्यौरा लें तो हम पाते हैं कि निर्गुणकी उपासना और सगुणसे प्रीत ये दो बातें सारी सभ्यताओंमें थीं। इस सगुण - प्रीतमें थोडासा श्रद्धाभाव भी आ जाता है , भययुक्त आदर भी आता है और कल्पनाविलास भी बडी मात्रामें आ जाता है। सगुण - प्रतीकोंमें सूर्य , वर्षा , मेघ , बिजली , चंद्रमा , सागर , नाग ये अतिचर्चित प्रतीक रहे। सगुण प्रतीकोंकी विशेषता ये होती है कि वे होते तो हैं कोई प्राकृतिक वस्तुमान लेकिन कल्पनामें उन्हें मानवी रूप दिया जाता है। उनमें श्रद्धालु हों तो वे प्रतीकोंसे मनौतियाँ भी माँग लेते हैं और उनके दैवी गुणोंसे ल...