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जनमदिन एक लालका

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जनमदिन एक लालका 2 अक्तूबर 2010 --गाँधी जयन्ती सरकारी छुट्टी थी। कहाँ कहाँसे आयोजनोंकी घोषणा हो चुकी थी। टीव्ही के हर चैनल पर "वैष्णव-जन" की धुन आकर तुरंत गायब हो जाती थी -- मानों कह रही हो -- "ये तो केवल आपके मनमें एक तडका लगानेके लिये है -- आपके मनोरंजनमें बाधा डालनेके लिये नही।" बीच-बीचमें नीचेके कोनेमें गाँधीजीकी छोटीसी छवि भी झलक जाती थी। बंगलोरमें मेरे पास आनेवाले कन्नडके अखबार हों, अंगरेजीके या मराठीके -- कहीं भी लाल बहादुर शास्त्री का उल्लेख नही था। देशबन्धु जैसे कुछ अखबारोंने जरूर उनको याद किया था, लेकिन देशके एक दिवंगत प्रधानमंत्रीको जिस सम्मानके साथ याद किया जाना चाहिये, मीडिया या सरकारी कार्यालयोंमें वैसा कुछ भी नही था। माना कि बतौर प्रधान मंत्री उनका कार्यकाल छोटा ही था, लेकिन उपलब्धि बहुत बडी थी और दुख इसी बातका हे कि उस उपलब्धिको भी भुलाया जा रहा था। मुझे उनकी वो छोटी छोटी बातें याद आईं जिन्होंने उस जमाने में हमारे किशोर-मनोंको प्रभावित किया था । मुझे आज भी याद है 1965 के वो दिन। उन दिनों टीव्ही जैसी कोई वस्...